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  • 2 days ago

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00:00तुतिश नाम का एक आदमी रहता था, वो अपने माता पता के साथ रहता था, उसके पास व्यापार कुने के पैसे तो थे, पर उसे पता नहीं चल रहा था कि कौन सा व्यापार शुरू करें, इसलिए वो इस विशय में पैसा लेने के लिए अपने पिता के साथ चर्चा करता
00:30अचार का पापड का ऐसे बहुत व्यापार है तो तुमें कुछ अलग व्यापार करना होगा।
00:47गाउ में जो व्यापार नहीं हैं अगर तूम करोगे तो अच्छा लाब पाने का मौका होगा।
00:56इसलिए हम सिर्फ सादा पकोडी नहीं बनाएंगे
01:00तो फिर
01:02हम सादा पकोडी में साथ साथ
01:06चिकन पकोडी, फिश पकोडी, बिच्ची पकोडी, आलू पकोडी, प्यास के पकोडी, अंडे के पकोडी जैसे अलग अलग तरह के पकोडी बनाएंगे
01:17ऐसे हमारा व्यापार को बहुत लाब मिलेगा
01:20रितेश को अपने पताजी के बाद सच लगे
01:23परन्तु मुझे इतने व्रकाल के पकोडी बनाना नहीं आता है न पताजी
01:29मुझे भी तो बनाना नहीं आता
01:32हम खुद इन सब के विधी बनाएंगे
01:35और इसके लिए तुम्हारी मा भी सहायता करेगी
01:38ऐसे कहकर रितेश के पताजी रितेश को प्रोच साहिब करते हैं
01:44पैसले के अनुसार पकोडी को बनाने के सामगरी रितेश खरीद के
01:49रसोई घर में इखटा कर रहा होता है
01:55कि उसके पताजी पके हुए अन्डों को दो हिस्सों में काट रहे होते हैं
02:01और इसकी मा पकोडी के लिए बेसमन का मिश्रुन तयार कर रही होती है
02:06बनाए हुए मिश्रुन को छे अलग-अलग बरतन में बराबरी से इसकी मा डालती है
02:13रितेश के पताजी पहले बरतन में कटे हुए अंडे, तूसरे बरतन में कटे हुए प्यास, तीसरे बरतन में कटे हुए मिर्ची, चौथे बरतन में कटे हुए आलू, पांच्पे बरतन में कटे हुए केले, और छटी बरतन में कटे हुए चिकिन के पीसिस डालते हैं
02:34और फिर एक एक करके उन सारे अलग तरह के पकोडी को तेल में तलते हैं
02:41रितेश जब पकोडी का स्वाब देखता है तो उसको बहुत स्वादिश लगता है
02:46फिर वो अपनी पिताजी के बातों को सच मान कर पकोडी के व्यापार को द्रोनिश्य से शुरू करता है
02:53ऐसे शुरू हाता रितेश की जीत की कहानी
02:56पंद्रा साल बात वही पकोडी का व्यापार रितेश को सिर्फ अमीर ही नहीं बलकि बहुत घमन और कटोर बना देता है
03:07दूसरी और रितेश के बताजी को बहुत दुनों से ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था
03:13और सुनाई भी नहीं दे रहा था
03:15इसलिए वो रितेश को चिकित्सा करवाने के लिए पूछने की प्रयत्न करते हैं
03:21पर रितेश कभी उनको समय ही नहीं देता था
03:24इसलिए रितेश के पताजी खुद अस्पताल जाने का निश्य करते हैं
03:30पर उनके पास पैसे ना होने के कारण रुतिश के दुकान को निकल पड़ते हैं।
03:35अरे रुतिश बेटा, कुछ दिनों से ना कुछ ठीक से दिखाई दे रहा है, ना कुछ सुनाई दे रहा है।
03:43जितिसा के लिए तीन हजार रुपयों की जरूरत है।
03:47थोड़ा मदद करो ना बेटा, क्या, तीन हजार रुपय, उतने पैसे तो मेरे पास नहीं है।
03:53पर पीटा, कल ही तो तुमने बहु को पताया था, कि हैर रोज तुमें तीस हजार मलते हैं।
04:00आप पहले यासर चलिए, कह राओ ना पैसे नहीं है।
04:04और घर चले जाते हैं। घर पहुँचने के पास जिकित्सा के पैसे मागने रिद्देश के पास गया था।
04:11पर उसने ये कहकर भेज दिया, कि उसके पैसे नहीं है।
04:16क्या, तीन हजार के लिए उसने ऐसा के दिया।
04:20व्यापार तो अच्छा चल रहा है ना।
04:22शायद उसको हमारा यहां रहना पसंद नहीं
04:27बहु ने भी खाना सिर्फ उन दोनों के लिए बनाया है
04:31मैंने हम दोनों के लिए खाना बनाया है
04:33तो फैर यही है हमारा यहां रहना वो दोनों चाहते ही नहीं है
04:39चलो इसी रात को यहां से निकलते हैं
04:42ऐसे फैसला करके दोनों उसी राट गाह से निकल जाते हैं।
04:47माधा पिता के लापता होने पर भी रितेश को चिन्ता नहीं हुए।
04:51अगर किसी ने पूछा तो कहता था कि तीर तियात्रा पे गया है।
04:56रितेश को पकोडी के व्यापार में लाब हे लाब आ रहा था।
05:01वो उसके दुकान में दस और सहाई को काम पे लगा के उनको सारे पकोडी के विधी सिखा के काम करवाता था।
05:11इसके अनुसार उसने पकोडी के दाम भी बढ़ा दिया था।
05:14मिच्ची पकोडे 5 रुपए के 10 पीस।
05:18प्यास के पकोडे 8 रुपए के 10 पीस।
05:21आलू के पकोडे 10 रुपए के 10 पीस।
05:24अंडे के पकोडे 15 रुपए के 10 पीस।
05:27चिकिन के पकोडे 20 रुपए के 10 पीस।
05:30और मच्छी के पकोडे 25 रुपए के 10 पीस।
05:33पकोडी का स्वातिष्ट होने पर लोग भी बहत आते थे।
05:38जिसके वज़े से रितेश का दुकान हमेशा भीम्ट से भरा और व्यस्त रहता था
05:42और दुकान का लाब भी दुगना हो गया था
05:45रितेश ऐसे ही उसकी संपत्ती बढ़ाने में दिन भर व्यस्त रहता था
05:50और उसकी पत्नी भी अपनी समय अपनी सहेलियों के साथ बताने में और पैसे खर्च करने में व्यस्त रहती थी
05:57और उनके बच्चों के साथ भी ज्यादा वक्त नहीं बताती थी
06:04बच्चों के देखबाल के लिए एक ताई को रख के वो चले जाती थी
06:09रतेश व्यापार और संपत्ती के मुँं में पढ़ कर दोस्तों के साथ वक्त गुजारता था
06:17और उसकी पदनी उसके सहेलियों के साथ वक्त गुजारती थी
06:21इस वजे से उनके बच्चे बहुठ लापरवाही से बले पड़े
06:25रतेश अपने बच्चों को अनुशासन से नहीं बढ़ा कर पाया
06:29और अपने बीवी को उसकी शौंक से दूर नहीं रख पाया
06:33अब रतेश के साथ प्यार से दूर बाते करने के लिए भी कोई नहीं था
06:39उस समय मैं उसको उसके माता पता की बहुत याद आती है
06:43मैं कितना मूर्ख हूँ
06:45प्यार से देखबाल करने वाली मा और जिस व्यापार को इतने सिम्मदारी से देखबाल कर रहा हूँ
06:51उसका माकदर्श करने वाले पताजी को मैंने अनादर किया है
06:55नजानी वो कहा है, क्या कर रही हूंगे
06:58मैं तुरंट उनको ढूनके घर वापस रेकिया आता हूँ
07:02रितेश अपने माता पता को ढून में अपनी कार में निकल जाता है
07:06गाउ में ढूनते ढूनते
07:07उसको अपने माता पता गंदे, फटे हुए कपड़ों में नजर आते हैं
07:13ये देख रितेश भाग के उनके पास जोता है
07:18और कहता है आप ऐसे कैसे ये सब मेरा ही गलती है पताजी
07:26मुझे माफ कीजिए और कृप्या मेरे साथ घर चले मा
07:29रितेश तो अपने गलती का एसास होता है और वो अपने माता पता के साथ घर वापस आता है
07:37अपनी पत्नी को बोलता है कि आज से जो भी होगा मा के अनुसार होगा
07:43और व्यापार का सारा संपत्ती अपने पिताजी के हाथ कर देता है
07:49रतेश सिर्फ सहाइकों का और पकोडी के विधी का देखबाल करता है
07:54और उसकी पत्ती बच्चों का देखबाल और पढ़ाई का ध्यार रखती है
07:58सुख संपत्ती और परिवार का प्यार पाके सब सदा खुश रते हैं

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