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  • 6 days ago

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00:00सुबबया रंग बिरंगी मुर्गियों को एक तरफ एक टोकरी और दूसरी तरफ एक और टोकरी में रखता था
00:06उन मुर्गियों को सारा गाउं गुमा कर उन सब को बेच कर पैसे लेकर वो खुशी-खुशी घर लोता है
00:13सुनो करके उसकी पत्नी सुबमा को पुकारता है सुबबया
00:21हाँ जी आप आगे सारे मुर्गियों को बेचती है आपने
00:26ऐसे कहती है सुबमा
00:28अरे हाँ हाँ दुगने दाम को बेचती है मैंने
00:31ऐसे खुशी मैं कहता है सुबबया
00:34हाँ हाँ उस मुर्गी को अंडे देने के लिए दो महीने इंतजार करना पड़ेगा हाँ बात तो सही है उन सब मुर्गियों में से एक गुलाब रंग की मुर्गी को अपने हाथ में लेकर हाँ ये मुर्गी तो हर दो महीनों में एक बार ही अंडे देता है काशे साल भर हर मही
01:04इसी मुर्गे के वज़े से तो हम कुछ तो भी कमा पा रहे हैं, अब उसी से काम चलाना होगा, अब चलो, खाने का वक्त हो गया, खाने आ जाएए आप, उस रात के बारा बचने के बाद, सुब्वया धीरे से नींद में जाक कर अपनी आंखे खोलता है, उसके बगल में मौ�
01:34रंग की मुर्गी को वो बाहर निकालता है, और उस मुर्गी से सुब्वया ऐसे बात करता है, हर महीना अगर तु अंडा देगी तो तेरा कुछ जाएगा क्या, या फिर तुझे इस बात की घमंड है, कि तु एक ही है जो रंग बिरंगे अंडे देती है, आज मैं तेरा घम
02:04ज्यादा पैसे के लिए बेच दूँगा, देख लेना, ऐसे कहकर जोर से हसकर उसके चाकू से उस गुलाब रंग की मुर्गी को मार देता है सुबया, लेकिन उसके पेट में देखने पर उसे एक भी अंडा नजर नहीं आता है, हाई भगवान, ऐसे सोचते ही रहता है कि इ
02:34पर तु तो वही निकला, अरे रे, इतनी अच्छी पैसे देने वाली मुर्गी को तुने जान से मार दिया, अरे रे, सोने की बतक की कहानी कभी सुनी नहीं है क्या तुमने, आय भगवान, ये मेरे पती ने क्या कर दिया, तुझे लालची बनने की क्या जरूरत थी, ऐसे व
03:04पागल हो गई है क्या, नीन से जाकर सुबमा परेशान होकर अपने पती की ओर देखती है, उसे कुछ नहीं समझाता है, वो तुरंत बाहर जाकर टोकरी के नीचे बैठे उस मुर्गी को भी देखती है, वो मुर्गी तो हमेशा की तरह सही सलामत थी, ये देख सुबमा अं�
03:34चल जाओ, सो जाओ अभी, कहता है सुबबया, एरे जाई ये ना आप भी, मुझे तो बुरा सपना आया कि आपने उस मुर्गी को जान से मार दिया, क्योंकि आप लालची बनकर उसके पेट में मौजुद अंडों को मिकालना चाते हैं, मैं कितनी घबर आ गई, पता है आप
04:04आज अगर हमें चैन की नींद मिल रही है, तो वो उस गुलाब रंग की मुर्गी के वज़े से ही है, उसको मैं क्यों मार डालूँगा, चलो सो जाओ अभी, तुम और तुम्हारे सपने, ऐसे कहकर सुबबया सो जाता है, लेकिन सुबमा वही बैठकर आतीत में चले जाती ह
04:34अगल बगल वालों में बेच देना, बड़े हुए मुर्गीओं को बिकाव के लिए रख देना, और उन मुर्गीओं को सुबबया का, इधर उदर जाकर बेच देना, यही होता था, लेकिन मुर्गिया हर रोज नहीं बिकती थी, कभी कबार तो 10-15 दिनों में एक ही मुर्�
05:04सारा दिन घूम कर थके हारे सुबबया उसके घर लोटता है
05:09घर आकर वो बरामदे में बैठता है और इसके बगल में सुबबमा खड़ी रहती है
05:14क्या आज भी एक भी मुर्गी नहीं बिकी
05:16वो ऐसे पूछी रही थी कि वहाँ एक सादू आता है
05:20माता खाने के लिए कुछ दे दो ऐसे पूछता है
05:25ठका हुआ सुबबया ए सादू हमारे पास ही खाने के लिए कुछ नहीं है
05:31अब तुम्हे क्या दे अगर चाहिए तुम्हे तो हमारे पास बहुत सारे मुर्गिया है
05:36एक लेकर जाओ, ऐसे कहता है, तब सादू छोटा सा हसी एक देखर, मुर्गी का मैं क्या करूँगा बेटा, मैं मांस नहीं खाता हूँ, मेरे पास ही एक मुर्गी है, इसको तुम ही पालो, ये लो.
05:49ये कहकर उनके हाथ में मौझूद एक गुलाब रंग की मुर्गी को उसके हाथ में देता है, मुड़कर देखने से पहले ही वो सादू वहां से गायब हो जाता है, सुबब या तब उस गुलाब रंग की मुर्गी को देख, इस तरह के मुर्गिया भी मौझूद है क्या, अग
06:19हाँ चलो ठीक है अब हमें इस प्रकार के मुर्गी कहां मिलेगा
06:24वो साधु मान साहारी नहीं था इसलिए दिया उसने
06:28वरना इस रंग की मुर्गी हमारे पास कहां से आता
06:31ये कहकर उस मुर्गी को वही टोकरी में डाल कर वहां से चले जाते है
06:35अगले दिन देखने पर वो मुर्गी अंडे देता है
06:39ये देख वो दोनों उन सारे अंडों को एक जगल खटा करके रखते हैं
06:45कुछ दिन बाद उन अंडों से बाहर आये मुर्गीयों को देख सुब्बमा आश्यर चकित हो जाती है
06:53अरे सुनो इधर आईए आप सुनते हो अरे का हूँ आप इधर आईए चल दी ऐसे वो अपने पती को पुकारती रहती है
07:02अरे क्या हो गया ऐसे चिला रही है जैसे कोई मर गया क्या हो गया
07:07उसके ऐसे कहने पर सुबम्मा उसे रंग बिरंगी अंडों को दिखा कर ऐसे कहती है
07:13अरे देखिये न उस सादू ने जो मुर्गी हमको दिया है उसके अंडों से रंग बिरंगी मुर्गी आई है
07:19ये कहकर सुबम्मा उन मुर्गीयों को सुबवया को दिखाती है
07:23चलो अच्छा ही हुआ, भगवान की कृपा हो या साधू की, हमारे लिए तो ये भला ही है, चलो हमारे मुश्किले तो खतम हो गई, आज ही मैं इन सारे मुर्गियों को बाजार में दुगने दाम पर बेच कर उन पैसों के साथ घर लोटूँगा
07:38सुबबया जो रंग बिरंगे मुर्गियों को लाता है, वहां के गाउवाले कभी नहीं देखे थे, इसी कारण गाउवाले सारे बहुत उत्साह से, हमें चाहिए तो हमें चाहिए, ऐसे एक दूसरे में बहस करते हुए सुबबया के पास जाते हैं
07:53ऐसे वो मुर्गी एक महीने में सारे दिन अंडे देखकर, फिर दो महीने बिना अंडों के, फिर उसके बाद एक और महीना सारे दिन अंडे देते हुए रहती थी
08:14अब उन्ही महीनों में सुबबया भी अंडों को जमा करके उन्हें बाजार में बेचता था, ऐसे ही कुछी दिनों में पती-पत्नी दोनों कमाये हुए पैसों के कारण, चैन की नींद सोने लगते हैं
08:27सुबब मा वापस होश में आकर, ओ अब याद आया, सुबब में सोच रही थी कि ये मुर्गी साल भर अंडे क्यों नहीं देती है, शायद उसी कारण ऐसा बुरा सपना आया मुझे, ये सोच कर वापस गहरी मींद में सोच आती है, सुबब मा