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  • 2 days ago

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Transcript
00:00मैं हूँ मेरी बहन है, किसी भी बात पर मैं उससे लड़नूं सब रहता है, मामला बराबरी कर रहता है, दो मैं उसको लगाता हूँ, दो मुझको वो लगाती है
00:06तरीके तरीके से मैं भी उसके खिलाफ कुछ साजिश करता था
00:09फूली दिनों में वो भी करती थी
00:11जादा वो ही जीच जाती थी
00:12बैमानिया भी करता था मैं उसके साथ
00:14कुछ वो भी करती थी
00:15पर एक दिन उसको बोल दू यह घर ही तेरा नहीं है
00:17ये तो मेरे मूँ से नहीं निकलेगा कभी
00:19क्योंकि ये बात सची है ये नहीं
00:21कुछ भी और कह दो, गैंडी बोल दो
00:23ऐसे मोटी बचपन, कुछ भी बोलते थे, सब करते थे
00:25पर ये थोड़ी बोल पाओगे कि
00:27ये तेरा घर नहीं है, एक बार आपने
00:29उसके भीतर ये बात डाल दी कि
00:31ये तेरा घर नहीं है, तेरा घर कोई और है
00:33समाज की इस आधी आबादी
00:35के भीतर एक बड़े
00:37गहरे अकेले पन का
00:39सूने पन का भाव का जन्म होता है
00:41पुर्षों के लिए समझना थोड़ा मुश्किल होगा
00:43अपरप्यास करिए, आप बचपन से ये ऐसे
00:45महौल में हो, जहां आप सुनते आ रहे हो
00:47रोज की तुझे यहां से निकलना है, निकलना है
00:50जैसे एक तूटा हुआ, हवा में तैरता हुआ, पत्ता हो
00:54जिसको पता ही नहीं हो, कहां जाके गिरेगा
00:56वो अपने आसपास देख भी रही है, घर को तो कह रही है
00:58ये तो मेरा है नहीं, और जिसको
01:00ये मेरा घर बता रहे हैं, उसको मैं जानती नहीं
01:02तो फिर मेरा घर का है, मैं हूँ कौन
01:04भीतर से लड़की सिकुड जाती है
01:06जहां जाओंगी, कहीं उमारनी पीटने
01:09तो नहीं लगेगा, उन घर में भी देखा है
01:10अपनी भावियों को पिटते हुए, मा को पिटते देखा है
01:13बड़ी बहन जहां गई है, वहाँ बड़ी बहनों से
01:15सुनती है कि पिट रही है, और नहीं भी पिट रही है
01:17कोई ज़रूरी नहीं है कि ठपड़ चहरे पर ही मारा जाए
01:20नहीं भी पिट रही है, तो शरणार्थी होना समझते हो
01:23रिफ्यूजी होना समझते हो
01:24हम जहां के थे, वहाँ से उठा के हमें कहीं और डाल दिया गया है
01:27और कहा जाएगा कि अब तुम इनको अपना मानो, इस हद तक अपना मानो
01:31कि तुम्हारे माबाप भी जैसे बदल गए, इनको बोलो पापा मम्मी
01:34कैसे पापा मम्मी किसी और को बोल दे, और वो बोलती है

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