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00:00बेहोश मंजिलों की तरफ भागते रहते हैं और अंधी लड़ाईयां लड़ते रहते हैं
00:04और उसी में अपने आपको कभी निराश कर लेते हैं ये बोल कर कि अर्या सफल हो गए
00:08और कभी पीट थप थपा लेते हैं कि हम तो सफल हो गए पार्टी है भाई पार्टी है
00:12ट्रेन पहुच गई ना एक स्टेशन पर, पार्टी दे रहे हैं
00:15ये सवाल कभी पूछेंगे यह नहीं कि जिस स्टेशन पर पहुची है
00:18वहाँ तुम्हें होना भी चाहिए था
00:20तुम यहाँ आये ही क्यों हो, ये मंजिल तुम्हारी कैसे हो गई
00:23ये पुछेंगे यहीं नहीं, सही लक्ष क्या होता है
00:25सही लक्ष वो होता है जो आपके भीतर की कमजोरियों को तोड़े
00:30आपके भीतर जो कुछ ऐसा है कि खत्म होना चाहिए
00:34लक्ष बनाओ जो उसे खत्म ही कर दे