• 3 months ago
राजसमंद. मेवाड़ और मारवाड़ ही नहीं राज्य के प्रसिद्ध प्रभु श्री चारभुजानाथ के जलझूलनी एकादशी के लक्खी मेले में शनिवार को मंगला आरती के समय से लगाकर चारभुजा जी की राजभोग आरती तक पाण्डाल श्रद्धालुओं से अटा रहा। ठाकुरजी की शोभायात्रा कई टन गुलाल उड़ातेछोगाला छैल के जयकारे लगाते हजारों श्रद्धालु प्रभु के बाल स्वरूप के सरोवर स्नान के न सिर्फ साक्षी बने, बल्कि उन्हें स्नान करवाने को आतुर दिखाई दिए। जलझूलनी पर शनिवार दोपहर 12.10 बजे जैसे ही भगवान चारभुजानाथ का सोने की पालकी में बैठाकर पुजारी मंदिर की सीढ़ियां उतरने लगे तो घंटों से इंतजार कर रहे श्रद्धालु जोरदार जयकारे लगाते हुए दर्शन को आतुर हो गए। इस दौरान पूरा वातावरण छोगाला छैल के जयकारों से गूंज उठा। ऐसे में ठाकुरजी का बेवाणसीढियों से नीचे उतरने का नजारा अलौकीक हो गया।

श्रद्धालुओं ने खूब हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैयालाल की व छोगाला छैल के जयकारे लगाते हुए गुलाल व अबीर की बौछार कर दी। भगवान के बाल स्वरूप के विग्रह की शोभायात्रा भोग आरती के बाद शुरू हुई। इसमें सबसे आगे भगवान का निशान, हाथी, घोड़ा व ऊंट पर बैठकर नगाड़ा की धुन बज रही थी। चांदी की पालकी सबसे पहले निकली, जो दूध तलाई तक खाली गई। वहीं, सोने की पालकी में प्रभु के बाल स्वरूप को विराजित किया गया। शोभायात्रा में पुजारी हाथों में निशान, सूरज, चांद, मोरपंखी गोटे, छड़ी व ढाल-तलवार लिए चल रहे थे। भगवान की श्रृंगारित प्रतिमा केवड़े के फूल में बिराजित थी। सोने की पालकी जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई मकानों की छतों व झरोखों में खड़े श्रद्धालुओं ने बेवाण पर जमकर पुष्प वर्षा की।

बेवाण के आगे भक्तजन जयकारे लगाते और भजनों की धुनों पर नाचते चल रहे थे। रास्ते में स्थित छतरी पर परंपरा के अनुसार प्रभु को विश्राम कराया गया और अमल का भोग धराया गया। पुजारियों ने हरजस का गान किया। इसके बाद प्रभु की सोने की पालकी वापस जयकारों के साथ रवाना होकर दूधतलाई पहुंची। जहां, हजारों श्रद्धालु प्रभु के मनोहारी दर्शन के लिए उत्साहित और लालायित खड़े थे। दूधतलाई स्थित छतरी में अल्प विश्राम के बाद रेवाड़ी वाले पुजारियों की ओर से ठाकुरजी को स्नान की रस्म अदा कराई गई। स्नान कराने के बाद राजावत परिवार की ओर से प्रभु के बाल स्वरूप को केवड़े में लपेटकर दूधतलाई की परिक्रमा करने से पूर्व दही से स्नान कराया गया। इसके बाद राजावत परिवार के श्रद्धालुओं ने प्रतिमा को माथे पर लेकर दूधतलाईा की परिक्रमा करवाई। इस दौरान करीब एक हजार पुजारियों ने प्रभु के विग्रह के साथ परिक्रमा की। परिक्रमा के समय श्रद्धालुओं ने बाल स्वरूप को पानी के छिड़काव कर आनंद लिया।

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