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  • 6 days ago
उद्यानं ते पुरुष नावयानम्।
( वेद )
अरे मनुष्य ! सोच तुझसे आगे कुछ भी नहीं है,देवता भी तेरे नीचे हैं,ये भी तरसते हैं मानव देह को।तू ऐसे देह को पाकर खो रहा है।क्या कर रहा है ?जी जरा मैं आजकाल सर्विस ढूँढ रहा हूँ।जरा आजकल एक लाख के चक्कर में हूँ,जरा आजकल,लड़का जरा बड़ा हो जाय,बीबी जरा ऐसी हो जाय,बेटा जरा।क्या सोच रहा है ? इसके लिये तू आया है।अनन्त बाप,अनन्त बेटे,अनन्त पति,अनन्त बीबी,अनन्त बैभव अनन्त जन्मों में बना चुका,पा चुका,भोग चुका,खो चुका अभी पेट नहीं भरा,दस बीस करोड,दस बीस अरब,दस बीस बीबी,दस बीस बच्चे के चक्कर में पड़ा है सोच !उठ उपर को उद्यानम्।अगर तू चूक गया तो ऐ मनुष्य तुझसे आगे और कोई सीट नहीं है ये अन्तिम सीट पर तू खड़ा है अब जब यहाँ से नीचे गिरेगा तो-
आकर चारि लक्ष्य चौरासी।
योनि भ्रमत यह जीव अविनासी।।
कबहुँक करि करुणा नर देही।
करुणा करके मानव देह,इस बार जो मिला,यह हर बार नहीं मिला करेगा।हजार,लाख,करोड़ साल बाद भी नहीं मिला करेगा।

*- # जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज*
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