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Kalma and Namaz Difference : बीते सोमवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। उस समय असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने अपनी जान कलमा पढ़कर बचाई। इस घटना के बाद सभी के मन में सवाल है कि आखिर इस्लाम में कलमा क्या है और इसकी अहमियत क्या है, कलमा और नमाज में कितना फर्क है और दोनों को कब पढ़ा जाता है?

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~PR.115~HT.336~

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Transcript
00:00जम्मु कश्मीर के पहल काम में मंगलबार को जिस तरीके से दहशत गर्दों ने अपनी दहशत से 28 लोगों की जान ली उसने हर किसी को छक जोर कर रख दिया है
00:13आपको बता दें इस दौरां दहशत गर्दों ने मुस्लिम पहचान साबित करने वाले लोगों को छोड़ दिया
00:18यानि जिने कलमा पढ़ना आता था उन्हें छोड़ दिया गया और जिने नहीं आता था उन्हें हिंदू समझकर मार दिया गया
00:24लेकिन असम विश्विधियाले के प्रोफेसर देवाशीश भटाचारिया बाल-बाल बज गए क्योंकि उन्हें कलमा आता था
00:31जिसे उन्होंने पहल काम में उन दैशत गर्दों के सामने पड़ा
00:35देबशीज भटाचारे ने बाद में बताया एक दहशतगर्द हमारे पास आया और मेरे बगल में बैठे इनसान को गोली मार दी
00:41फिर उसने मेरी तरफ देखा और पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं
00:45मैंने सिर्फ जोर से कलमा पढ़ा उसके लावा सवाल का जवाब नहीं दिया
00:49मुझे नहीं पता कि क्या हुआ वो बस पलड गया और चला गया
00:53ऐसे में इस घटना के बाद लोगों के मन में सवाल है कि आखिर इसलाम में ये कलमा क्या है
00:57इसकी एहमियत क्या है कलमा और नमाज में कितना फर्क है दोनों को कब पढ़ा जाता है
01:01अगर किसी ने गलती से कलमा पढ़ लिया तो क्या वो मुसल्मान हो जाएगा
01:05चलिए इस वीडियो में इसका जवाब जानने की कोशिश करते हैं
01:08आम तोर पर इसलाम में कलमा और नमाज दोनों का अपना अपना अलग महत्व है
01:12कलमा हमें बताता है कि हमारा एमान किस पर है और नमाज हमें सिखाती है कि उस एमान पर चलना कैसे है
01:17कलमा का मतलब अगर असान भाशा में समझे तो एक शपत होती है
01:20यानि ये बताता है कि इनसान अल्ला पर ही भरोसा रखता है
01:24और पेगंबर मुहम्मद ﷺ अल्ला के भेजे हुए आखरी नभी है
01:28इसलाम की नियु कल्मा तैयब से ही रखी जाती है
01:31जब कोई इसलाम को कबूल करता है तो कल्मा पड़ता है
01:35यानि वो इस बात पर पूरी दरह से भरोसा जताता है
01:38कि वो अल्ला की ही अबादत करेगा
01:40और प्रॉफिट मुहम्मद अल्ला के आखरी रसूल है
01:43इसलाम में छे तरह के कल्में बताये जाते हैं
01:46ये कुरान की अलग अलग आयतों
01:47और पेगंबर मुहम्मद की बातों से लिये गए
01:49इसलाम में पहला कल्मा तैयब के नाम से जाना जाता है
01:52यानि तैयब का मतलब होता है पवित्र, प्यूरिटी
01:55और यही वो कल्मा है जिसके मताबिक कहा जाता है
01:57यानि अल्ह के अलावा किसी की अबादत नहीं करनी है
02:02और पेगंबर मुहम्मद अल्ह के आखरी रसूल है
02:06इसके बाद भी बहुत सारे कल्मा दिये हुए हैं
02:08जैसे की शहादत, कल्मा तमजीद, कल्मा तोहीद, कल्मा इस्तख़पर, कल्मा रद कुफर
02:13आपको बताते हैं कल्मा पढ़ने का कोई वक्त मुकरर नहीं है
02:16लेकिन मुसल्मान नमास के बाद कल्मा बार बार दोहराते हैं
02:20इसके लावा नमास मुसल्मानों के लिए दिल और रूप की आवाज है
02:23या ल्ला से दुआ मांगने, उनकी तारीफ करने
02:25और अपने गुनाहों की माफी मांगने का सबसे पाक तरीका है
02:28नमास इसलाम के चार बुनियादी स्थम्बो में से एक है
02:31दिन में पाँच बार नमास पढ़ी जाती है
02:32नमास में कुरान की आयतों को पढ़ा जाता है
02:34नमास खड़े होकर जुकर सिर जुकाकर और बैट कर पढ़ी चाती है
02:38तो अब सवाल ये उटता है कि क्या आप इसलाम धर्म अपनाए बिना कल्मा कह सकते हैं
02:42आसान शब्दों में कहें तो कल्मा इसलाम का एमान है
02:44जिसके दोरे एक वेक्ति इस बात को सुविकार करता है कि वो सिर्फ अल्लह में बिश्वास रखता है
02:49और हजरत मौम्मद अखरी रसूल है
02:52अगर कोई इनसान सिर्फ बोल दे कल्मा लेकिन दिल से इसलाम को न माने तो क्या होगा
02:57अगर कोई वेक्ति जुबान से कल्मा पड़े लेकिन दिल से न माने तो उसे मुसल्मान नहीं कहा जाता
03:02सिर्फ शब्दो को दोराने से कोई इसलाम में दाखिल नहीं होता
03:05असली इसलाम दिल के गवाही से आता है
03:07और अल्ला ने कुरान में ये साफ कर दिया है कि किसी को भी इसलाम में दाखिल कराने के लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती
03:14ये एक बड़ा गुना है
03:15इस वीडियो में फिलाल इतना ही आप क्या कहेंगे कॉमेंट सेक्शन में हमें लिक कर जरूर बताएं
03:18वीडियो को लाइक करें शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब करना बिल्कुल न भूलें

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