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00:00उदासी आई थी, उदासी निकल जाती, तुमने काहे को उसका इतना बड़ा फुगगा फुला दिया, वासना, वो भी लहर की तरह आती है, लहर की तरह गुजर भी जाएगी, काहे को तुम उसमें सर्फिंग करने लग गए लहर पे, घुजगए उसमें जाकर, इंसान हो, इं
00:30पड़ जाएगा, दूसरे काम पर निकल जाओ, जो अब हाव मुझे पता है, पाशविक है, सायोगिक है, सामाजिक है, मैं क्यों उसको सुईकार करूह, मैं क्यों उसको बल दूह, मैं क्या इतना निरुपाय हूँ, क्या मैं इतना कमजोर हूँ कि वासना उठी, और मैं काह�
01:00झाल झाल

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