| Jhansi Fort | 1857 के महासंग्राम की गाथा सुनाता झांसी का किला
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झांसी के किले का निर्माण सन 1613 में ओरछा राज्य के शासक वीर सिंह जूदेव बुंदेला ने करवाया था। झाँसी का किला बुंदेलों के गढ़ों में से एक है। सन 1728 में मोहम्मद खान बंगश ने महाराज छत्रसाल को पराजित करने के इरादे से उन पर हमला किया। इस युद्ध में पेशवा बाजीराव ने महाराज छत्रसाल की सहायता मुगल सेना को पराजित करने के लिए की। इसी का आभार प्रकट करने के लिए महाराज छत्रसाल ने निशानी के रूप में अपने राज्य का एक हिस्सा पेश किया।
सन 1766 से 1769 तक विश्वास राव लक्ष्मण ने झांसी के सूबेदार के रूप में काम किया। इसके बाद रघुनाथ राव नेवलकर (दिवतीय) को झाँसी का सूबेदार नियुक्त किया गया। उन्होंने झाँसी राज्य के राजस्व में वृद्धि, महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। राव की मृत्यु के बाद उनके पोते रामचंद्र राव के हाथो में झासी की सत्ता आ गयी और उनका कार्यकाल 1835 में उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया। उनके उत्तराधिकारी रघुनाथ राव (तृतीय) थे जिनकी मृत्यु सन 1838 में हो गयी। उनके अक्षम प्रशासन ने झाँसी को बहुत ख़राब वित्तीय स्थिति में लाके खड़ा कर दिया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाधर राव को झांसी के राजा के रूप में स्वीकार कर लिया। सन 1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका (मनु) से शादी की जो बाद में रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी गयी।
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झांसी के किले का निर्माण सन 1613 में ओरछा राज्य के शासक वीर सिंह जूदेव बुंदेला ने करवाया था। झाँसी का किला बुंदेलों के गढ़ों में से एक है। सन 1728 में मोहम्मद खान बंगश ने महाराज छत्रसाल को पराजित करने के इरादे से उन पर हमला किया। इस युद्ध में पेशवा बाजीराव ने महाराज छत्रसाल की सहायता मुगल सेना को पराजित करने के लिए की। इसी का आभार प्रकट करने के लिए महाराज छत्रसाल ने निशानी के रूप में अपने राज्य का एक हिस्सा पेश किया।
सन 1766 से 1769 तक विश्वास राव लक्ष्मण ने झांसी के सूबेदार के रूप में काम किया। इसके बाद रघुनाथ राव नेवलकर (दिवतीय) को झाँसी का सूबेदार नियुक्त किया गया। उन्होंने झाँसी राज्य के राजस्व में वृद्धि, महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। राव की मृत्यु के बाद उनके पोते रामचंद्र राव के हाथो में झासी की सत्ता आ गयी और उनका कार्यकाल 1835 में उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया। उनके उत्तराधिकारी रघुनाथ राव (तृतीय) थे जिनकी मृत्यु सन 1838 में हो गयी। उनके अक्षम प्रशासन ने झाँसी को बहुत ख़राब वित्तीय स्थिति में लाके खड़ा कर दिया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाधर राव को झांसी के राजा के रूप में स्वीकार कर लिया। सन 1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका (मनु) से शादी की जो बाद में रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी गयी।
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