गर्मियों में घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो चैतुरगढ़ जरूर जाएं. यहां पुरातात्विक और प्राचीन इतिहास का खजाना है.
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00:00प्राचीन इतिहास के लिए भी पहचान रखता है यहां मा महिशा सुर मर्दनी का प्राचीन मंदिर है
00:26जहां चैत्र और शारदी नवरात्र में विशेश पूजा अर्चना की जाती है
00:30बताया जाता है कि पहले पूराक्षेत्र दलदली रहता था
00:34आवागमन के साधन भी नहीं थे जिससे यहां सिर्फ चैत्र नवरात्री ही मनाई जाती थी
00:40यह जो है शत्र गड़ के टस्मीर के नाम से इसको जाना जाता है
00:46और मैं उन्नाइस और दैंबेस यहां जुड़ा हुआ हूँ
00:50तो यह क्या है आज सहर की जो कांक्रीट की जंगल से आदमी पूप करके
00:55यहां जो है माता का दर्शन और एक प्रकार से
01:00मन रंजन के लिए प्रक्रितिक जिस्टों से आना चाहता है और जब तक कि यहां आदमी रहता है चाहए उरुस्व महिला हो वो अपने पुराने जो ग्रह कारण
01:14चाहए ना जला हुथ उसको बूश जाता है तो यहां एक प्रकार से आज आद होने काल के लिए पिकनिक इस्थाल बन गया है राइपूर से कोर्बा से महासमुन से जांगेर से बहुत दूर-दूर से
01:27Amitabha Raja Prithvi Dev Pratham Dwarah Chaituragadir ke Nirmand ka Ullekh
01:52पुरातत्व विदो ने इसे मजबूत प्राकरतिक किलों में शामिल किया है।
02:22जानकारी के अनुसार गर्मियों के मौसम में यहां का तापमान 5 से 10 डिग्री या इससे ज्यादा नीचे चला जाता है।
02:52क्योंकि रास्ता भी नहीं था और यह भी जो छित्र है वो पुरा दलदल लुमा था।
02:58पानी बहुत ज्यादा राता था और दलदल हो गया था। इसलिए चाहित नवरात्री ही मनाती थे बाकी नवरात्री नहीं मनाती थे।
03:06लोगों में प्रचार प्रसार हुआ।
03:10कि ये जगा जो है 36 गड़ की सबसे प्राचिन भूमी ही।
03:16ये करीब 1800 साल का तो इसका इस्यास मिलता है कल्चुरियों का।
03:22परन्तु ये उसके पहले का इस्थान है। गोड़ राजा जो थे वह बहुत पहले से यहां थी।
03:31ये जो है समुझ सता से साड़ी तीनाजार फुग उचाही पे है।
03:38और सत्पुड़ा फ्रंकला पे है। यहां से अमरका ट्रक जो है पैदल जाएंगे तो 25-30 किलोमेटर है।
03:47और इस पहाड़ी के चारों तरफ छोटे-छोटे गाउं हैं।
03:53जेमरा, बगदरा, राहा, सुरका, सपलवा, बाईसेमर, तिलतारा, उडान, ये लाफा।
04:01इस तरीके से 25-30 किलोमेटर के अंदर में छोटे-छोटे कई गाउं हैं।
04:06ओ गाउं जो हैं। प्राचिन गाउं हैं।
04:10कल्चुरियों का गड़ था। गड़ मतलब किला।
04:17इनकी राध्धानी थी तुमान, ये यहां 28 सताब्दी में छत्तिगर में पहुची।
04:24इनका प्राधुर्भाव होता है तुपुरा साखा सी। ये जबलपूर के किनारे हैं।
04:31कल्चुरियों की सागत तुप्रव साखा सी। वो तुमान पे आये। तुमान में आके उनने अपने राध्धानी बनाई।
04:40और इस स्थान को उसने जीता। यहां गड़ जो था वो गोण राजाओं का था। यह गड़ मंडला के अधिन था।
04:52यहां का अंधिम प्रसाशक राजा दामा धोरुआ और रानी रमन्ना थी। यह गोण जाती कि थी।
05:02और उनको हराकर कल्टूरियों ने अपना राज जी यहां इस्तापित किया आठवी सताप्दी में।
05:32अक्सर घूमते हुए दिख जाते है। यहां पेड़ पौधों की काफी सम्रिद और ओशदिय गुणों वाली प्रजातिया मौजूद है।
05:40शैतुरगड की पहाडियों और इसके आसपास के जंगलों को इसकी खास और विविदिता से परिपूर्ण जैव विविदिता के लिए भी जाना जाता है।
05:49राजकुमार शाह, ETV भारत, कोर्बा