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इस वीडियो में, हम भगवान अय्यप्पा की अद्भुत कहानी बता रहे हैं, जो शिव और विष्णु के दिव्य संयोग से जन्मे थे।
महिषी राक्षसी के अत्याचार से देवता भी पीड़ित थे, और उसे केवल शिव और विष्णु के संयोग से जन्मा पुत्र ही पराजित कर सकता था। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, और भगवान शिव से उनका मिलन हुआ, और इस दिव्य संयोग से भगवान अय्यप्पा का जन्म हुआ।
इस अद्भुत शिशु को पंडालम राज्य के शासक राजशेखर ने पंपा नदी के किनारे पाया। उन्होंने उसका नाम मणिकंदन रखा और अपने पुत्र की भाँति उसका पालन-पोषण किया। जन्म से ही मणिकंदन में असाधारण शक्ति और ज्ञान था।
लेकिन महारानी अवंतिसुंदरी नहीं चाहती थीं कि मणिकंदन राजा बने। इसलिए रानी ने राजा को यकीन दिलाया कि उनका इलाज सिर्फ बाघिन के दूध से ही हो सकता है।
मणिकंदन ने यह चुनौती स्वीकार की और बाघिन के दूध की खोज में जंगल की ओर निकल गए। जंगल में मणिकंदन का सामना महिषी राक्षसी से हुआ, जिसका उन्होंने वध कर दिया। इसके बाद, मणिकंदन एक बाघिन पर सवार होकर महल लौटे, और उनके पीछे कई बाघ भी चल रहे थे। मणिकंदन के इस दिव्य रूप से हैरान रानी ने अपनी गलती स्वीकार की।
इसके बाद, मणिकंदन ने राजा बनने से इनकार कर दिया और शबरीमाला पर्वत पर रहने का फैसला किया। वहां, उन्होंने भक्तों के लिए एक मंदिर बनवाया और खुद ध्यान में लीन हो गए।
आज भी, भक्तगण 41 दिनों की तपस्या कर, 'स्वामीये शरणम अय्यप्पा' का जाप करते, नंगे पैर यात्रा करते हुए भगवान अय्यप्पा के दर्शन के लिए जाते हैं।
इस वीडियो में, हम भगवान अय्यप्पा की वीरता, ज्ञान और भक्ति की कहानी बता रहे हैं।
ऐसे और पौराणिक तथ्यों को जानने के लिए, हमें फॉलो करें!
इस वीडियो में, हम भगवान अय्यप्पा की अद्भुत कहानी बता रहे हैं, जो शिव और विष्णु के दिव्य संयोग से जन्मे थे।
महिषी राक्षसी के अत्याचार से देवता भी पीड़ित थे, और उसे केवल शिव और विष्णु के संयोग से जन्मा पुत्र ही पराजित कर सकता था। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, और भगवान शिव से उनका मिलन हुआ, और इस दिव्य संयोग से भगवान अय्यप्पा का जन्म हुआ।
इस अद्भुत शिशु को पंडालम राज्य के शासक राजशेखर ने पंपा नदी के किनारे पाया। उन्होंने उसका नाम मणिकंदन रखा और अपने पुत्र की भाँति उसका पालन-पोषण किया। जन्म से ही मणिकंदन में असाधारण शक्ति और ज्ञान था।
लेकिन महारानी अवंतिसुंदरी नहीं चाहती थीं कि मणिकंदन राजा बने। इसलिए रानी ने राजा को यकीन दिलाया कि उनका इलाज सिर्फ बाघिन के दूध से ही हो सकता है।
मणिकंदन ने यह चुनौती स्वीकार की और बाघिन के दूध की खोज में जंगल की ओर निकल गए। जंगल में मणिकंदन का सामना महिषी राक्षसी से हुआ, जिसका उन्होंने वध कर दिया। इसके बाद, मणिकंदन एक बाघिन पर सवार होकर महल लौटे, और उनके पीछे कई बाघ भी चल रहे थे। मणिकंदन के इस दिव्य रूप से हैरान रानी ने अपनी गलती स्वीकार की।
इसके बाद, मणिकंदन ने राजा बनने से इनकार कर दिया और शबरीमाला पर्वत पर रहने का फैसला किया। वहां, उन्होंने भक्तों के लिए एक मंदिर बनवाया और खुद ध्यान में लीन हो गए।
आज भी, भक्तगण 41 दिनों की तपस्या कर, 'स्वामीये शरणम अय्यप्पा' का जाप करते, नंगे पैर यात्रा करते हुए भगवान अय्यप्पा के दर्शन के लिए जाते हैं।
इस वीडियो में, हम भगवान अय्यप्पा की वीरता, ज्ञान और भक्ति की कहानी बता रहे हैं।
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