• 2 days ago
🧔🏻‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?
लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquiry-gita-course?cmId=m00036

📚 आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?
फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?cmId=m00036

➖➖➖➖➖➖
#acharyaprashant #ram

वीडियो जानकारी: 11.02.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने जीवन की जटिलताओं और मानव अस्तित्व की वास्तविकता पर गहन विचार प्रस्तुत किया है। उन्होंने एक बूंद के माध्यम से जीवन के अनुभवों को समझाने का प्रयास किया है, जो एक तार से लटकती है और अपने अस्तित्व के बारे में चिंतित है। आचार्य जी ने बताया कि हम सभी एक ही प्रकृति का हिस्सा हैं और हमारी पहचान केवल एक भ्रम है। उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने आप को विशेष मानते हैं, जबकि वास्तव में हम सभी एक समान हैं। जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझते हुए, आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि आत्मज्ञान का अर्थ है अपने आप को और अपने चारों ओर की दुनिया को सही दृष्टिकोण से देखना। उन्होंने यह भी बताया कि मृत्यु केवल एक रूपांतरण है, न कि अंत।

प्रसंग:
राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे !

अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार।
अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे ॥1॥

अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद।
अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे ॥2॥

अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव।
अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे ॥3॥

अंजन कहों कहां लग केता, दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा।
कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ॥4॥

कबीर साहब

~ तुम अलग नहीं हो, ये जान लो, तो तुम अलग हुए।
~ राम निरंजन न्यारा रे, इसको हमें सुनना ऐसे है, कि मैं नहीं हूँ न्यारा रे।
~ हम अपनी बात करें और अपनी बात यह है कि मैं न्यारा नहीं हूँ, मैं न्यारा नहीं हूँ।
~ मैं कौन हूँ? राम निरंजन न्यारा रे, उसको हमने कह दिया मैं नहीं न्यारा रे और आगे मेरा परिचय है, क्या? अंजन सकल पसारा रे। मैं वही हूँ जो ये पूरा सकल पसार है, ये जो अनंत विस्तार है, मैं वो हूँ।

संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~

Category

📚
Learning

Recommended