''संग हूँ तेरे'' एक मौलिक कविता है जिसमें कवि स्वयं को प्रथम पुरुष मनु तथा प्रेमिका को प्रथम नारी श्रद्धा सम्बोधित करते हुए कहता है -
तुम श्रद्धा सी बस्ती हृदय मेरे|
मैं प्रेम करूँ पल-पल तुमको,
मनु सा प्रिये, संग हूँ तेरे||
कभी कवि प्रेमिका को प्रथम कविता तथा कभी स्वाति की बूँद कहकर सम्बोधित करता है|
कवि कहता है कि मैं मनु, चातक कई रूपों में तुम्हारे साथ हूं|
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धन्यवाद |
तुम श्रद्धा सी बस्ती हृदय मेरे|
मैं प्रेम करूँ पल-पल तुमको,
मनु सा प्रिये, संग हूँ तेरे||
कभी कवि प्रेमिका को प्रथम कविता तथा कभी स्वाति की बूँद कहकर सम्बोधित करता है|
कवि कहता है कि मैं मनु, चातक कई रूपों में तुम्हारे साथ हूं|
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