The stories of Vikram and Betal, originally written in sanskrit, have been an integral part of Indian fairy tales for many centuries. Legend has it that King Vikramaditya (Vikram), the emperor of Ujjain promises a monk to bring Betal, the vampire as a fovour promised to him. The condition is that the king should bring the vampire in complete silence, lest Betal, the vampire will fly back with the corpse to its abode. As soon as Vikram attempts to fetch the corpse in which the vampire Betal was residing, the vampire starts to narrate a story. And at the end of every story it compells king Vikram to solve the puzzle of the story, thus breaking his silence. The stories thus narrates by Betal, the Vampire forms an interesting series of fairy tales.
Check out Vikram & Betal's Tales - "Four Learned Fools"
बहोत समय पहेली बात हैं उजैनी शहर मैंने करुणाकरण नाम का एक ब्राम्हण रहेता था । उसे चार बेटे थे दया, हरी, विधु और नील । करुणाकरण कि पत्नि का तभी दिहांत होगया था जब ये बच्चे बहुत छोटे थे । करुणाकरण नेही उन्हें पालपोसकर बड़ा किया था । ये चारो बड़े ही मूर्ख थे और पढ़ने के नाम से दूर भागते थे । इस वजसे ब्राम्हण बहुत दुखी रहता था । एक दिन ब्रम्हणे अपने चार बेटोसे कहा कि मैंने अपने दोस्त से तुम लोगोके बारेमे बात कि हैं । वो एक अच्छा जादूगार और अच्छा गुरु भी हैं । वो तुम लोगोको जादू सिखाएगा और इसकेलिए तुमलोगोंको उसके पास एक साल केलिए कर्नाटक जाना होगा । ब्राम्हण के चारों बेटे राजी होगए । वे चारों करुणाकरण के दोस्त के पास कर्नाटक गए और एक साल वहा रहेकर जादू की शिक्षा ग्रहण करने लगे । कड़ी महेनत करके उन्होंने जादूकी शिक्षा ली । एक साल कब बीत गया पता ही नहीं चला । अब लड़को के घर जाने कि बारी आगई और वे घर जाने केलिए निकल पड़े । घर जाते समय उन चारो को मरे हुए शेर कि हड्डियां दिखी और वे चारों रुक गए । अपनी जादू कि शिक्षा आजमाने केलिए वे लोग उस हड्डियों के पास चले गए और एक एक कर के अपनी जादुई शक्ति आजमाने लगे । चारोने अपनी अपनी शक्ति आजमाके उस शेर को जिन्दा किया । उस शेर ने जिन्दा होते ही उन चारो को मार डाला । ये कहानी बताने के बाद बैताल ने विक्रम से सवाल पूछा कि चारों भाइयों मेंसे सबसे बड़ा बेवकूफ कोन था?
विक्रम का जवाब सुनने के लिए ये विडियो देखे - "चार मूर्ख भाई"
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बहोत समय पहेली बात हैं उजैनी शहर मैंने करुणाकरण नाम का एक ब्राम्हण रहेता था । उसे चार बेटे थे दया, हरी, विधु और नील । करुणाकरण कि पत्नि का तभी दिहांत होगया था जब ये बच्चे बहुत छोटे थे । करुणाकरण नेही उन्हें पालपोसकर बड़ा किया था । ये चारो बड़े ही मूर्ख थे और पढ़ने के नाम से दूर भागते थे । इस वजसे ब्राम्हण बहुत दुखी रहता था । एक दिन ब्रम्हणे अपने चार बेटोसे कहा कि मैंने अपने दोस्त से तुम लोगोके बारेमे बात कि हैं । वो एक अच्छा जादूगार और अच्छा गुरु भी हैं । वो तुम लोगोको जादू सिखाएगा और इसकेलिए तुमलोगोंको उसके पास एक साल केलिए कर्नाटक जाना होगा । ब्राम्हण के चारों बेटे राजी होगए । वे चारों करुणाकरण के दोस्त के पास कर्नाटक गए और एक साल वहा रहेकर जादू की शिक्षा ग्रहण करने लगे । कड़ी महेनत करके उन्होंने जादूकी शिक्षा ली । एक साल कब बीत गया पता ही नहीं चला । अब लड़को के घर जाने कि बारी आगई और वे घर जाने केलिए निकल पड़े । घर जाते समय उन चारो को मरे हुए शेर कि हड्डियां दिखी और वे चारों रुक गए । अपनी जादू कि शिक्षा आजमाने केलिए वे लोग उस हड्डियों के पास चले गए और एक एक कर के अपनी जादुई शक्ति आजमाने लगे । चारोने अपनी अपनी शक्ति आजमाके उस शेर को जिन्दा किया । उस शेर ने जिन्दा होते ही उन चारो को मार डाला । ये कहानी बताने के बाद बैताल ने विक्रम से सवाल पूछा कि चारों भाइयों मेंसे सबसे बड़ा बेवकूफ कोन था?
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